Friday, April 16, 2010

हिंदी आज भी - चपरासिओं , क्लर्को , मातहतों और सड़क छाप लोगों की भाषा क्यों है ??

आजादी (?) के ६२ सालों के बाद भी हिंदी - कैफियत की भाषा क्यों है ? आखिर हिंदी भाषी होने पुर इतनी लानत मलामत क्यों है ? मुंबई में तो एक अपराध हो गया है . कितने हिंदी भाषी साहित्यकारों के बच्चे हिंदी में बात करते हैं और हिंदी माध्यम से पढाई की है? ये सवाल बहुत असहज और दुविधापूर्ण हैं. दुर्भाग्य से अनुतरित और अवान्चिच्त ये प्रश्न हिंदी के इस दयनीय वस्तुस्थिति का दारुण चित्रण हैं.

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